Rahul Gandhi की असली छवि और सोशल मीडिया का बनाया हुआ भ्रम

Rahul Gandhi की असली छवि और सोशल मीडिया द्वारा फैलाए गए झूठे नैरेटिव के बीच फर्क को समझने वाला सरल और साफ विश्लेषण।

भारत की राजनीति में राहुल गांधी सबसे ज़्यादा गलत समझे जाने वाले नेताओं में से एक हैं। सोशल मीडिया पर उनके बारे में अक्सर मज़ाक, मीम और कटे-फटे वीडियो वायरल होते रहते हैं। इन वीडियोज़ को देखकर बहुत से लोग मान लेते हैं कि राहुल गांधी अजीब हैं या गंभीर नेता नहीं हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति उनके असली भाषण या इंटरव्यू सुनता है, तो उसे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। यही सबसे बड़ा अंतर है—जो लोग असली कंटेंट देखते हैं, उनकी राय अलग होती है, और जो लोग edited, मज़ाकिया क्लिप देखते हैं, उनकी राय बिल्कुल अलग बन जाती है।

राहुल गांधी का असली कंटेंट, जैसे उनके YouTube के पूर्ण भाषण या X (Twitter) के आधिकारिक वीडियो, सामान्य और समझदारी भरा होता है। वे साफ भाषा में बात करते हैं और अपनी बातों को calmly रखते हैं। लेकिन जनता का बड़ा हिस्सा असली वीडियो नहीं देखता। उन्हें सोशल मीडिया एल्गोरिद्म वही दिखाता है जो वायरल है—5 सेकंड की awkward clip, मीम वाली Reel, या आधे-अधूरे बयानों वाला छोटा कट। इसलिए लोगों का दिमाग असली राहुल गांधी से नहीं, बल्कि वायरल किए गए edited संस्करण से बनता है।

बीते कई सालों में BJP IT Cell ने राहुल गांधी के खिलाफ एक मजबूत narrative खड़ा किया है। “पप्पू” शब्द हो, sarcastic memes हों, या गलत captions—इन सबको इतनी बार दोहराया गया कि बड़ी संख्या में लोग इसे सच मानने लगे। किसी भी नेता की छवि अचानक नहीं बनती; यह लगातार चलने वाले प्रचार और अफवाहों का परिणाम होती है। राहुल गांधी के मामले में, उनकी वास्तविक छवि से ज़्यादा, लोगों के दिमाग में वह छवि बैठी है जो सोशल मीडिया ने उन्हें दिखायी है।

भारत जैसे देश में राजनीतिक नेता की popularity सिर्फ degree या education पर नहीं टिकती। भले ही राहुल गांधी मोदी जी से अधिक educated हैं, लेकिन जनता का भरोसा education पर नहीं, बल्कि personality और communication style पर बनता है। मोदी जी की बोलने की शैली, उनका tone, और एक गरीब परिवार से उठकर PM बनने की कहानी लोगों से emotional connect बनाती है। उसके मुकाबले राहुल गांधी का calm और simple communication style उतनी जल्दी वोटर को attract नहीं करता। इसलिए perception में फर्क आ जाता है।

राहुल गांधी के बारे में जो भी funny या weird clips वायरल होते हैं, वे हमेशा बहुत छोटे और कटे हुए होते हैं। पूरी clip देखकर कोई भी समझ सकता है कि उसमें कुछ भी गलत या मज़ेदार नहीं था। लेकिन जब उसे काटकर 5 सेकंड के awkward moment में बदला जाता है, तो वह meme material बन जाता है। सोशल मीडिया पर लोग पूरा content देखने के बजाय वही edited clip देखकर अपनी राय बना लेते हैं। असल वीडियो देखने पर पता चलता है कि उनकी बात पूरी तरह सही थी।

इस समस्या का दूसरा पहलू यह है कि Congress की सोशल मीडिया टीम शुरुआत में काफी कमजोर थी। जब BJP की ओर से लगातार memes, edited clips और propaganda चल रहा था, तब Congress timely counter narrative नहीं दे पाई। इसका सीधा असर यह हुआ कि IT Cell की बनाई छवि ही लोगों के दिमाग में बैठ गई। जो कंटेंट BJP वायरल करता रहा, वही जनता तक पहले पहुंचता रहा, और असली बातें पीछे रह गईं।

आपको राहुल गांधी अजीब नहीं लगे क्योंकि आपने उनका असली कंटेंट देखा। जब कोई व्यक्ति पूरा भाषण सुनता है, तो उसे clarity मिलती है कि राहुल गांधी सामान्य, समझदार और सीधे-सादे नेता हैं। लेकिन जो लोग सिर्फ viral clips देखते हैं, वे उसी छोटे moment से पूरा image बना लेते हैं। इसी वजह से perception का इतना बड़ा फर्क दिखता है।
आज के समय में राजनीति सिर्फ ground reality से नहीं, बल्कि सोशल मीडिया narratives से चलती है।

राहुल गांधी के मामले में यह साफ दिखता है कि उनकी असल छवि overshadow हो गई है और edited एवं viral content ने उनकी public image को काफी हद तक खराब किया है। इसलिए जरूरी है कि हम नेताओं को समझने के लिए उनके असली भाषण और पूर्ण वीडियो देखें, ना कि काट-छांट कर बनाए गए मज़ाकिया क्लिप्स।
कुल मिलाकर, राहुल गांधी अजीब नहीं हैं। उन्हें अजीब दिखाया गया है। असली समस्या उनके व्यक्तित्व या बोलने में नहीं, बल्कि उस narrative में है जो लगातार सोशल मीडिया पर चलाया गया। जो लोग उनका असली कंटेंट देखते हैं, उनकी राय हमेशा अलग और ज़्यादा सही बनती है।

Roushan Mehta
Roushan Mehta

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