Bihar Flood Agriculture Damage: हर साल फसलों में भारी नुकसान क्यों?

Bihar flood agriculture damage हर साल लाखों हेक्टेयर फसलें बर्बाद करता है। जानिए किसानों को होने वाला आर्थिक नुकसान, कारण और सरकार की नीतियाँ।

Bihar Flood Agriculture Damage भौगोलिक रूप से बाढ़ की अत्यधिक संवेदनशील राज्य है — यह राज्य 56% इलाकों में बाढ़ की जोखिम में है, जैसा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है। बाढ़-प्रवण इलाकों में नदियों का उफान, मिट्टी का कटाव और जलभराव जैसी घटनाएँ किसानों की खड़ी फसलों को तबाह कर देती हैं। उदाहरण के लिए, 2024 की बाढ़ में बिहार के 19 जिलों में लगभग 2.24 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बाढ़ की चपेट में आई, और उनमें से करीब 91,817 हेक्टेयर में 33% से अधिक फसल की क्षति हुई। यह दिखाता है कि बाढ़ सिर्फ कुछ गांवों तक सीमित नहीं है, बल्कि बड़े पैमाने पर कृषि भूमि पर असर डालती है।

आर्थिक दृष्टि से भी यह क्षति बहुत बड़ी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 30 जिलों में बाढ़ और अतिवृष्टि के चलते लगभग 6.45 लाख हेक्टेयर में फसल को नुकसान हुआ, और राज्य सरकार ने इसे ₹ 875.27 करोड़ का आर्थिक झटका बताया। इसी तरह, एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 7.84 लाख हेक्टेयर भूमि में बाढ़-वर्षा से फसल बर्बाद हुई, और क्षति का अनुमान ₹ 970 करोड़ के करीब था। यह संकेत है कि बाढ़ की समस्या बिहार के लिए समय-समय पर आर्थिक बोझ बन जाती है।

Bihar Flood Agriculture Damage

फसल प्रकार की बात करें तो, अधिकांश नुकसान खरीफ फसलों (जैसे धान) का होता है, क्योंकि मानसून के बाद नदियों का पानी खड़ी फसलों को डुबो देता है। उदाहरण के लिए, दरभंगा जिले में गेहूंआ नदी में अचानक आई बाढ़ के कारण रबी की फसलें बर्बाद हो गईं। राज्य सरकार भी इस समस्या को पहचानती है और प्रभावित किसानों को मुआवजा देने की घोषणाएँ करती रही है — हाल ही में घोषित नीति में किसानों को प्रति हेक्टेयर ₹ 8,500 से ₹ 22,500 तक का मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है।

Bihar Flood Agriculture Damage बाढ़ का बार-बार आना न सिर्फ किसानों की मौजूदा फसल को नष्ट करता है, बल्कि उनकी भविष्य की फसल बोने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। जब खेतों में मिट्टी कट जाती है या जलभराव की वजह से जमीन क्षतिग्रस्त होती है, तो किसानों को पुनः बुवाई के लिए और मेहनत करनी पड़ती है। इसके अलावा, बाढ़ की आशंका के कारण किसान बीज, उर्वरक और अन्य इनपुट खरीदने में भी हिचकिचाते हैं, क्योंकि उन्हें यह डर रहता है कि पानी उनके निवेश को बर्बाद कर सकता है।

सामाजिक दृष्टि से भी यह एक बड़ी चुनौती है। बाढ़-ग्रस्त किसान न केवल आर्थिक दबाव महसूस करते हैं, बल्कि आत्महत्या और गरीबी की अधिक संभावना का सामना कर सकते हैं, क्योंकि उनकी आजीविका लगातार अस्थिर रहती है। इसके अलावा, बहुत से किसान मुआवजा पाकर भी अपनी क्षति की पूरी भरपाई नहीं कर पाते क्योंकि असली नुकसान उनकी भविष्य की उपज और जमीन की दीर्घकालीन उत्पादकता में होता है।

निष्कर्षतः, Bihar Flood Agriculture Damage में हर साल बाढ़ से फसलों को होने वाला नुकसान सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि यह किसानों की आर्थिक सुरक्षा और राज्य की कृषि स्थिरता पर लगातार बुरा प्रभाव डालने वाली एक संरचनात्मक समस्या है। इस समस्या से निपटने के लिए बाढ़-नियंत्रण योजनाओं (जैसे तटबंधों का निर्माण), बेहतर जल प्रबंधन, और प्रभावी मुआवजा पॉलिसी की आवश्यकता है — ताकि किसानों को सिर्फ नुकसान के और नुकसान का सामना न करना पड़े, बल्कि उनकी आजीविका सुरक्षित हो सके।

Roushan Mehta
Roushan Mehta

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